कोलकाता १३ अगस्त २०१६। कोलकाता के कला मन्दिर सभागार में दिनांक १३ अगस्त २०१६ को विप्र फाउंडेशन के संस्थापक संयोजक और वर्तमान समन्वयक श्री सुशील ओझा को पश्चिम बंगाल के माननीय राज्यपाल महोदय श्री केशरीनाथ त्रिपाठी द्वारा हज़ारों कोलकातावासियों की उपस्थिति में “असाधारण सम्मान” से विभूषित किया गया जिसमेँ सैकड़ों विप्रजन शामिल हुए। पुण्य पवित्र भारतभूमि के पूर्वोत्तर में बसे बंगभूमि के लिए प्राचीन काल से मान्यता रही है कि इस भूमि ने सदैव समय से आगे अपनी सोच रखी है और किसी भी रचनात्मक और सामाजिक कार्य में अग्रणी भूमिका निभायी है इस माटी के पुतों ने। इसी कड़ी में मां काली के आशीर्वाद से साधारण पर संस्कारवान एवं स्वाभिमानी परिवार में जन्मे श्री सुशील ओझा ने अपनी शुचिता, सत्यता, सौम्यता, सद्भाव, सरलता, स्पष्टवादिता, समभाव, सांगठनिक, सामथ्र्य, सुदृढ़ भाषा, सटीक और सम्मोहक शैली से पूरे ब्राह्मण समाज में एक नयी ऊर्जा का संचार किया है, स्वाभिमान का जोश भरा है, एकजुटता का विचार दिया है। उन्होंने अपने कुशल और दूरदर्शी नेतृत्व से युगों से चले आ रहे उस मिथक को तोडऩे में भागीरथी प्रयास किया कि विप्र समाज कभी संगठित नहीं हो सकता है, इनमें एकजुटता का अभाव है। आज के आर्थिक और संकुचित युग में श्री सुशील ओझा के मुख्य संयोजन में विप्र फाउण्डेशन के नाम से ब्राह्मण समाज के वैश्विक संगठन ने न केवल समाज को एकजुट किया वरन् रचनात्मक और सामाजिक कार्यों में भी प्रमुख भूमिका निभाने में कामयाब रहा है, यह संगठन। मां सरस्वती की असीम अनुकम्पा प्राप्त श्री सुशील ओझा ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा कोलकाता के श्री माहेश्वरी विद्यालय से की। मेधावी छात्र जीवनकाल से ही श्री ओझा की रुचि सामाजिक कार्यों के प्रति रही। विप्र आत्मगौरव के प्रतीक श्री सुशील ओझा ने अपनी सार्वजनिक गतिविधि शहर की प्रमुख सेवा संस्था राजस्थान ब्राह्मण संघ से आरम्भ की। संस्था के कई पदों पर बखूबी से कार्य संभालने के बाद जब अपने इस संस्था के सचिव पद संभाला, उसके पश्चात् संस्था ने अपनी गतिविधियों का जो विकास किया, वह अनुकरणीय है। राजस्थान और हरियाणा के ब्राह्मणों के इस संगठन को आपने सर्वे भवन्तु सुखिन: की पवित्र सोच से एकजुट किया तथा समाज को एक शक्ति के रुप में परिवर्तित किया। आपने स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मुलभूत समस्याओं से समाज का ध्यान जोड़ा और साथ ही साथ सांस्कृतिक, साहित्यिक, गतिविधियों के माध्यम से सर्वांगीण विकास की धारा प्रवर्तित करने का भी प्रयास किया। समयचक्र के साथ-साथ अपने सेवाव्रती निष्ठावान, प्रज्ञावान, अनुशासित और क्रियाशील साथियों के समर्पित सहयोग से आपके नेतृत्व में साल 2009 में राजस्थान और हरियाणा के ब्र्राह्मणों का अखिल भारतीय अधिवेशन विप्र महाकुंभ कोलकाता में आयोजित किया गया, जिसमें देशभर से हजारों लोगों ने भाग लिया। उपस्थित अपार जनसमूह और समाज के ऋषितुल्य विचारकों के बीच तीन दिन चले, इस वैचारिक महाकुंभ के मंथन के पश्चात् समाज के एक वैश्विक संगठन बनाने की कवायद आरम्भ हुई, जिसकी मूलधारणा राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता और स्वजातीय गतिशीलता थी। विप्र फाउण्डेशन के नाम से बने इस संगठन ने पूरे देश के समाजजनों को जोड़ते हुए धीरे-धीरे अपनी सांगठनिक तथा रचनात्मक सामाजिक गतिविधियां आरम्भ की, जिसमें प्रमुख अपनी वैवाहिक सम्बन्ध, उच्च शिक्षा के लिए व्याजरहित ऋण, समाज के आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के लिए बीमा योजना आदि है। पूरे देश में लगातार दौरे कर श्री सुशील ओझा ने समाज के बिखरे मोतियों को एकसूत्र में पिरोने का हिमालयी प्रयास किया है, जिसके लिए युगों तक याद किया जाएगा। सात साल के अपने छोटे किन्तु सार्थक काल में आपके स्वप्नदर्शी संगठन विप्र फाउण्डेशन ने अपने रचनात्मक सामाजिक कार्यों से पूरे देश के विप्र समाज में सेवा-संवेदना-साहित्य, संस्कृति, समरसता-स्वाभिमान की नयी धारा प्रवाहित की है, जिस पर हर ब्राह्मण इस संगठन के साथ-साथ युवा ऊर्जावान श्री सुशील ओझा पर गौरव महसूस कर सकता है। बाल्यकाल से ही धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण ने आपके सनातन धर्म और गुरुओं के प्रति अटूट श्रद्धा रही है। देश के अनेक संतों और मनीषियों के सानिध्य और आशीर्वाद ने आपमें ओज भरा है। श्री सुशील ओझा पर इनके गुरु श्री रावतपुरा सरकार, आचार्य महामण्डलेश्वर श्री पुण्यानन्दगिरीजी महाराज, ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर श्री विश्वदेवानंदजी महाराज, स्वामी संवित् सोमगिरीजी महाराज, गौ सेवक पथमेड़ा के स्वामीजी दत्तशरणानंद जी महाराज आदि अनेक संतों का आशीर्वाद रहा है। साहित्यानुरागी श्री सुशील ओझा की साहित्यिक रुचि ने उन्हें इस देश के अनेक साहित्यकारों का भी सानिध्य दिया। स्व. विष्णुकान्त शास्त्री, स्व. कल्याणमल लोढ़ा, कवि प्रदीप, श्री शंकरलाल पुरोहित, श्री श्याम आचार्य जैसे अनेक साहित्यकारों के सानिध्य में आपकी भाषा शैली और लेखन ने दिन-दूनी-राज चौगुनी वृद्धि की। आपकी जीवटता और जीजीविषा का ही प्रताप है कि आज आपकी ओजस्वी वाणी जब व्यक्तित्व के माध्यम से उतरती है तो उपस्थित श्रोताजन मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। भाषा और व्याकरण पर आपकी पकड़ देखते बनती है। व्यवहारकुशल और मृदुभाषी श्री सुशील ओझा ने कभी अपनी सामाजिक जीवन के माध्यम से राजनीति में नहीं घसीटा। दलगत राजनीति से ऊपर उठे श्री ओझा का लगभग सभी राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों के समभाव आदर और सम्मान है। ब्राह्मण समाज के साथ-साथ आप सदैव सभी सामाजिक कार्यों में अग्रणी भूमिका अदा करने के लिए विख्यात है, यही कारण है कि आज कोलकाता में आप हिन्दी भाषी समाज का सबसे लोकप्रिय चेहरा है। अभिमान से सदैव दूर रहने वाले सरल प्रकृति के श्री सुशील ओझा ने अपनी लगन, मेहनत, निष्ठा और बेदाग चरित्र से न केवल अपने समाज ही नहीं बल्कि अपने व्यवसाय में भी शनै: शनै: उत्तरोत्तर प्रगति की है। हमें आशा और विश्वास है कि आपकी यह गतिशील और दूरदर्शी यात्रा अनवरत नये आयाम को प्राप्त करे और हम सभी समाज की उन्नति के पुनीत कार्य में आपके सहभागी बने, यही कामना है।