केंद्रीय समाचार

December 25, 2024

उत्तर बंगाल, बिहार, सिक्किम, आसाम, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश की सीमाओं पर बसा सिलीगुड़ी कोलकाता के बाद प्रदेश का सबसे बड़ा शहर है।

December 22, 2024

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सनातन संस्कृति व भगवान परशुराम के आदर्शों का प्रचार-प्रसार कर पांच दिवसीय उज़्बेकिस्तान के ताशकंद दौरे से लौटी विप्र फाउंडेशन द्वारा प्रवर्तित इंटरनेशनल सोसायटी फॉर परशुराम कॉन्शसनेस (ISPAC) की चेयरपर्सन डॉ. हर्षा त्रिवेदी का शुभाशीष समारोह आयोजित किया गया।

December 20, 2024

धर्मनगरी सिलीगुड़ी में पहली बार सनातन संस्कृति संसद एवं संत समाज द्वारा आयोजित लाखों कंठ से गीता पाठ का भव्य और ऐतिहासिक आयोजन हुआ

जोनल समाचार

December 25, 2024

हरियाणा की उद्योग नगरी फरीदाबाद के सेक्टर-8 में स्थानीय ब्राह्मण समाज की ओर से महाराणा प्रताप भवन में विप्र फाउंडेशन के संस्थापक श्री सुशील ओझा जी के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किया गया।

December 25, 2024

विप्र फाउंडेशन खैरथल तिजारा ने सामाजिक सरोकार के तहत अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए 10 नवंबर, 2024 को महेश्वरा गांव (तिजारा) में पंडित सुरेश शर्मा पुत्र छेलूराम जी की दो कन्याओं के विवाह के निमित्त 81000 रुपए कन्यादान किया है।

December 25, 2024

दीपावली की रामा-श्यामा करने हम जब श्री कुलदीप राजपुरोहित के कार्यालय पहुंचे तो हमें अपने यहां आया देख अपनत्व से कुलदीपजी की आँखें भर आयी

विप्र फाउण्डेशन - पृष्ठभूमि

भारत का सांस्कृतिक इतिहास इस सत्य का साक्षी है कि सृष्टि के उषा काल से लेकर आज तक ब्राह्मणों ने अपने अपूर्व चिंतन एवं तप से ज्ञान-विज्ञान अर्जित करके इस महादेश एवं समाज का शोभन श्रृंगार किया है । वह स्वयं के लिए नहीं राष्ट्र, संस्कृति एंव मानवता के लिए जीता आया है । ब्राह्मणों का मूल मंत्र ही रहा है “सर्वे भवन्तु सुखिन:” । समाज एवं राष्ट्र जब भी दिग्भ्रमित हुआ तो ब्रह्म-कर्तव्य से अनुप्राणित होकर विप्र मनिषियों ने सुपथ दिखाया । जब भी शासन वर्ग अपने प्रजा पालन धर्म से विमुख हुआ तो भगवान परशुराम बनकर उनका परिष्कार किया ।

कालक्रम से समय बदला, परिस्थितियाँ बदली और संस्कृतियों के संघात में जीवन दृष्टि भी प्रभावित हुई । पश्चिमीकरण ही आधुनिकीकरण का पर्याय बन गया । परूषार्थ चतुष्टय में अर्थ और काम ही धर्म और मोक्ष को लीलते गये । स्व-देश एवं स्व-संस्कृति की गौरवमयी भावना के क्रमश: क्षीण होते जाने से क्षेत्रवाद, वर्गवाद, सम्प्रदायवाद, जाति-उपजाति एवं भाषावाद लोगों के दिल एंव दिमाग पर ऐसे छा गए कि पूर्वजों के उदात्त जीवन मूल्य गौण होते चले गये ।

छीजत के इस दौर में ब्राह्मण समाज की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण एंव आवश्यक हो गई है । देश, समाज और व्यक्ति-व्यक्ति में तेजस्विता का संचार करने का प्राथमिक दायित्व परम्परा एवं नियति दोनों ही दृष्टियों से ब्राह्मणों के कंधों पर आता है ।

और पढ़ें
ज्वाईन विफा